क़त्अ हो कर काकुल-ए-शब-गीर आधी रह गई
क़त्अ हो कर काकुल-ए-शब-गीर आधी रह गई
अब तो ऐ सौदाइयो ज़ंजीर आधी रह गई
सारी बोतल अब कहाँ आधी में करते हैं गुज़र
मुंसिफ़ी से मोहतसिब ता'ज़ीर आधी रह गई
शाम का वा'दा किया आए वो आधी रात को
जज़्बा-ए-दिल की मिरे तासीर आधी रह गई
ढल गया अहद-ए-जवानी हो गया आख़िर शबाब
ज़िंदगी अपनी भी चर्ख़-ए-पीर आधी रह गई
इक कशिश-ए-इश्क़ कमान-ए-अबरू की है तेरी तड़प
बोद में जो राह थी दो तीर आधी रह गई
जुब्बा-साई करते करते घिस गई लौह-ए-जबीं
मेरी क़िस्मत की जो थी तहरीर आधी रह गई
सारी इज़्ज़त नौकरी से इस ज़माने में है 'मेहर'
जब हुए बे-कार बस तौक़ीर आधी रह गई
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