पूछेगा जो वो रश्क-ए-क़मर हाल हमारा
पूछेगा जो वो रश्क-ए-क़मर हाल हमारा
ऐ 'मेहर' चमक जाएगा इक़बाल हमारा
सौदे में तिरी ज़ुल्फ़ के लिखते हैं जो अशआ'र
होता है सियह नामा-ए-आमाल हमारा
अबरू का इशारा किया तुम ने तो हुई ईद
ऐ जान यही है मह-ए-शव्वाल हमारा
हर बार दिखाता है जुनूँ ख़ाना-ए-ज़ंजीर
इस घर में गुज़ारा हुआ हर साल हमारा
आते ही वो कहते हैं कि जाते हैं बस अब हम
बे-चैन हैं मँगवाइए सुख-पाल हमारा
मज़मूँ न बँधा मू-ए-कमर का तो वो बोले
टेढ़ा न हुआ शाइ'रों से बाल हमारा
महताब से कहता है मिरा चाँद का टुकड़ा
रुख़्सार तिरा साफ़ है या गाल हमारा
तुम अर्श हिलाते हो क़दम रख के ज़मीं पर
इस चाल से दिल हो गया पामाल हमारा
इक पल भी जुदा दीदा-ए-तर से नहीं होता
अब आँख का पर्दा हुआ रूमाल हमारा
याँ रूह पे होता है उस आवाज़ का सदमा
जी लेगा शब-ए-वस्ल में घड़ियाल हमारा
याँ गंज-ए-मआ'नी है तो वाँ सीम-ओ-ज़र ऐ 'मेहर'
दौलत वो बख़ीलों की है ये माल हमारा
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