नाला-ए-गर्म के और दम सर्द भरे क्या जिएँ हम तो मरे
नाला-ए-गर्म के और दम सर्द भरे क्या जिएँ हम तो मरे
हम-सफ़ीरान-ए-चमन रा कि रसांद ख़बरे अज़ मन-ए-नौहा-गरे
फ़स्ल-ए-गुल आई ये और में हूँ गिरफ़्तार-ए-क़फ़स कुछ भी चलता नहीं बस
हम-सफ़ीरान-ए-चमन रा कि रसांद ख़बरे अज़ मन-ए-नौहा-गरे
फँस गए दाम में सय्याद के शायद बुलबुल रोज़ सुनता हूँ ये ग़ुल
हम-सफ़ीरान-ए-चमन रा कि रसांद ख़बरे अज़ मन-ए-नौहा-गरे
मैं हूँ सय्याद है और शोर-ओ-फ़ुग़ान-ओ-फ़र्याद कोई देता नहीं दाद
हम-सफ़ीरान-ए-चमन रा कि रसांद ख़बरे अज़ मन-ए-नौहा-गरे
भूल कर कुंज-ए-क़फ़स तक कभी आए न सबा न सुनाना नाला मेरा
हम-सफ़ीरान-ए-चमन रा कि रसांद ख़बरे अज़ मन-ए-नौहा-गरे
कोई क़ातिल मैं रही 'मेहर' से कितनी ही शहीद मैं हूँ और क़ैद-ए-शदीद
हम-सफ़ीरान-ए-चमन रा कि रसांद ख़बरे अज़ मन-ए-नौहा-गरे
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