Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_b55a99dd3fd8f38caee476f952f0d375, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
न दिया बोसा-ए-लब खा के क़सम भूल गए - हातिम अली मेहर कविता - Darsaal

न दिया बोसा-ए-लब खा के क़सम भूल गए

न दिया बोसा-ए-लब खा के क़सम भूल गए

दे के ऐसी मुझे ए'जाज़ का दम भूल गए

चश्म-ओ-अबरू को तिरे देख के आता है ख़याल

ताक़-ए-किसरा पे यहाँ साग़र-ए-जम भूल गए

ऐ शह-ए-हुस्न ये क़लमें नहीं आरिज़ पे तिरे

कातिबान-ए-ख़त-ए-रुख़्सार क़लम भूल गए

वो भी क्या दिन थे कि आशिक़ थे तुम्हारे हम भी

अब तो फ़रियाद-ओ-फ़ुग़ाँ दर्द-ओ-अलम भूल गए

हाए क़िस्मत का लिखा आए तो क़ासिद ये कहे

ख़त तुम्हारे लिए वो कर के रक़म भूल गए

तेरा गुलज़ार है किस बाग़ की मूली बुलबुल

कू-ए-जानाँ में तो हम बाग़-ए-इरम भूल गए

चश्म-ए-बद-दूर वो आँखें हैं तुम्हारी साहब

देख कर चौकड़ी आहू-ए-हरम भूल गए

आप का दोस्त है ये अपनी बग़ल का दुश्मन

याद दिलवाए वहीं दिल ने जो हम भूल गए

ज़ाइक़ा मौत का बस याद दिला देता है

क्या क़यामत है ये कहना तिरा हम भूल गए

मिर्ज़ा महर-ए-मोहब्बत तुम्हें फिर याद आई

दिल पे गुज़री थी जो कुछ रंज-ओ-अलम भूल गए

रह गया याद तुम्हें जौर-ओ-जफ़ा ज़ुल्म-ओ-सितम

लुत्फ़-ओ-अल्ताफ़-ओ-इनायात-ओ-करम भूल गए

का'बा-ए-दिल में बस अब रहती है अल्लाह की याद

रास्ता दैर का हम शक्ल-ए-सनम भूल गए

याद रहती है फ़क़त हम को तिरे कूचा की

वाइ'ज़ों से सुना हाल-ए-इरम भूल गए

याद रखने की ये बातें हैं बजा है सच है

आप भूले न हमें आप को हम भूल गए

दिल से दिल को है अगर राह तो है याद से याद

तुम हमें भूल गए तुम को भी हम भूल गए

बस हमारे ही लिए आप को निस्याँ भी है

कभी ग़ैरों को न साहब कोई दम भूल गए

कूचा-ए-ज़ुल्फ़ में या हल्क़ा-ए-गेसू में तिरे

याद आता है यहीं दिल कहीं हम भूल गए

शेअर-हिन्दी जो सुने 'मेहर' जिगर तफ़्ता के

अपना अंदाज़-ए-फ़सीहान-ए-अजम भूल गए

(859) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Na Diya Bosa-e-lab Kha Ke Qasam Bhul Gae In Hindi By Famous Poet Hatim Ali Mehr. Na Diya Bosa-e-lab Kha Ke Qasam Bhul Gae is written by Hatim Ali Mehr. Complete Poem Na Diya Bosa-e-lab Kha Ke Qasam Bhul Gae in Hindi by Hatim Ali Mehr. Download free Na Diya Bosa-e-lab Kha Ke Qasam Bhul Gae Poem for Youth in PDF. Na Diya Bosa-e-lab Kha Ke Qasam Bhul Gae is a Poem on Inspiration for young students. Share Na Diya Bosa-e-lab Kha Ke Qasam Bhul Gae with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.