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दीदा-ए-जौहर से बीना हो गया - हातिम अली मेहर कविता - Darsaal

दीदा-ए-जौहर से बीना हो गया

दीदा-ए-जौहर से बीना हो गया

आइना महव-ए-तमाशा हो गया

देख कर आईना-ए-ज़ानू तिरा

आइना महव-ए-तमाशा हो गया

बा'द-ए-मोजिद आलम-ए-ईजाद में

आइना महव-ए-तमाशा हो गया

कर दिया हैराँ जिसे दिखलाई शक्ल

आइना महव-ए-तमाशा हो गया

वो हलब पहुँचा तो सुन लेना ये हाल

आइना महव-ए-तमाशा हो गया

पुश्त-बर-दीवार है तेरी हुज़ूर

आइना महव-ए-तमाशा हो गया

सामने से तेरे टलता ही नहीं

आइना महव-ए-तमाशा हो गया

शाना है दिल चाक मश्शाता है दंग

आइना महव-ए-तमाशा हो गया

देख कर उस रू-ए-रंगीं की बहार

आइना महव-ए-तमाशा हो गया

तेरे आगे चश्म-ए-आशिक़ की तरह

आइना महव-ए-तमाशा हो गया

'मेहर' को सकता है या ऐ रश्क-ए-माह

आइना महव-ए-तमाशा हो गया

महफ़िल-ए-इशरत में मह-रूयों के 'मेहर'

आइना महव-ए-तमाशा हो गया

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