दरिया तूफ़ान बह रहा है
दरिया तूफ़ान बह रहा है
आँखों का अजीब माजरा है
ज़ाहिद को ग़ुरूर ज़ोहद का है
रिंदों को ख़ुदा का आसरा है
ज़िक्र उन के दहन का जा-ब-जा है
है कुछ भी नहीं ये बात क्या है
दीवार का उन की साया ठहरा
इक ये भी सआ'दत-ए-हुमा है
हम-चश्मी और उन की अँखड़ियों से
नर्गिस तुझे कुछ भी सूझता है
पाँव के हमारे गो खरोसी
इक इक काँटा खटक गया है
उल्फ़त है खुली हुई बुतों से
अल्लाह से 'मेहर' क्या छुपा है
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