Khawab Poetry of Hatim Ali Mehr
नाम | हातिम अली मेहर |
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अंग्रेज़ी नाम | Hatim Ali Mehr |
मजमा' में रक़ीबों के खुला था तिरा जूड़ा
दीवाना हूँ पर काम में होशियार हूँ अपने
ज़ुल्फ़ अंधेर करने वाली है
वो ज़ार हूँ कि सर पे गुलिस्ताँ उठा लिया
पुतली की एवज़ हूँ बुत-ए-राना-ए-बनारस
पोशाक-ए-सियह में रुख़-ए-जानाँ नज़र आया
न दिया बोसा-ए-लब खा के क़सम भूल गए
कोई ले कर ख़बर नहीं आता
ईज़ाएँ उठाए हुए दुख पाए हुए हैं
डुबोएगी बुतो ये जिस्म दरिया-बार पानी में
दोपहर रात आ चुकी हीला-बहाना हो चुका
दिल ले गई वो ज़ुल्फ़-ए-रसा काम कर गई
बुतों का ज़िक्र करो वाइज़ ख़ुदा को किस ने देखा है
बुतों का ज़िक्र कर वाइ'ज़ ख़ुदा को किस ने देखा है
अजब है 'मेहर' से उस शोख़ की विसाल का वक़्त
ऐ 'मेहर' जो वाँ नक़ाब सर का