ये तजरबा हुआ है मोहब्बत की राह में
खो कर मिला जो हम को वो पा कर नहीं मिला
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ये मुमकिन है कि मिल जाएँ तिरी खोई हुई चीज़ें
कहीं ख़ुलूस कहीं दोस्ती कहीं पे वफ़ा
हमें पसंद नहीं जंग में भी मक्कारी
ढूँडा है हर जगह प कहीं पर नहीं मिला
शीशे के मुक़द्दर में बदल क्यूँ नहीं होता
दिल की हालत पूछने वालो
चराग़ दिल का मुक़ाबिल हवा के रखते हैं
दिल में जो मोहब्बत की रौशनी नहीं होती
मुझ से जल्दी हार कर मेरा हरीफ़
इस बार मिले हैं ग़म कुछ और तरह से भी
ख़ुद चराग़ बन के जल वक़्त के अंधेरे में