मुझ से जल्दी हार कर मेरा हरीफ़
जीतने का लुत्फ़ सारा ले गया
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ख़्वाब में तेरा आना-जाना पहले भी था आज भी है
लुत्फ़ आराम का तू क्या जाने
कहीं ख़ुलूस कहीं दोस्ती कहीं पे वफ़ा
ढूँडा है हर जगह प कहीं पर नहीं मिला
तेरी बीनाई किसी दिन छीन लेगा देखना
ये मुमकिन है कि मिल जाएँ तिरी खोई हुई चीज़ें
वो जो क़िस्से में था शामिल वही कहता है मुझे
कुछ और सबक़ हम को ज़माने ने सिखाए
दिल में जो मोहब्बत की रौशनी नहीं होती
शीशे के मुक़द्दर में बदल क्यूँ नहीं होता
हमें पसंद नहीं जंग में भी मक्कारी
वो भी चुप-चाप है इस बार ये क़िस्सा क्या है