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ये मुमकिन है कि मिल जाएँ तिरी खोई हुई चीज़ें - हस्तीमल हस्ती कविता - Darsaal

ये मुमकिन है कि मिल जाएँ तिरी खोई हुई चीज़ें

ये मुमकिन है कि मिल जाएँ तिरी खोई हुई चीज़ें

क़रीने से सजा कर रखा ज़रा बिखरी हुई चीज़ें

कभी यूँ भी हुआ है हँसते हँसते तोड़ दी हम ने

हमें मालूम था जुड़ती नहीं टूटी हुई चीज़ें

ज़माने के लिए जो हैं बड़ी नायाब और महँगी

हमारे दिल से सब की सब हैं वो उतरी हुई चीज़ें

दिखाती हैं हमें मजबूरियाँ ऐसे भी दिल अक्सर

उठानी पड़ती हैं फिर से हमें फेंकी हुई चीज़ें

किसी महफ़िल में जब इंसानियत का नाम आया है

हमें याद आ गई बाज़ार में बिकती हुई चीज़ें

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