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सर-ए-दरबार ख़ामोशी तह-ए-दरबार ख़ुशियाँ हैं - हस्सान अहमद आवान कविता - Darsaal

सर-ए-दरबार ख़ामोशी तह-ए-दरबार ख़ुशियाँ हैं

सर-ए-दरबार ख़ामोशी तह-ए-दरबार ख़ुशियाँ हैं

दर-ओ-दीवार की बातें दर-ओ-दीवार ख़ुशियाँ हैं

तुझे तकना तुझे सुनना तिरा हँसना मचल जाना

हमारे ग़म के आँगन में फ़क़त दो-चार ख़ुशियाँ हैं

कई हैं दास्तानें दफ़्न याँ यारों के सीने में

कहीं पर ग़म है ख़ुशियों में कहीं ग़म-ख़्वार ख़ुशियाँ हैं

अमीर-ए-शहर क्या जाने जो गुज़री है ग़रीबों पर

यहाँ पर ग़म के फेरे हैं वहाँ हर बार ख़ुशियाँ हैं

न जब तक हम समझ पाएँ हमारा मक़्सद-ए-तख़्लीक़

जहाँ में जो मयस्सर हों सभी बे-कार ख़ुशियाँ हैं

बड़ी मेहनत से लिक्खी है सर-ए-क़िर्तास जो मैं ने

कहानी में जो रक्खे हैं सभी किरदार ख़ुशियाँ हैं

जो मुझ पे शर्त हो अहमद मैं पूरी कर दिखाऊँगा

सर-ए-इंकार गुमनामी पस-ए-इक़रार ख़ुशियाँ हैं

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