दरिया की तरफ़ देख लो इक बार मिरे यार
दरिया की तरफ़ देख लो इक बार मिरे यार
इक मौज कि कहती है मिरे यार मिरे यार
वीरानी-ए-गुलशन पे ही मामूर है मौसम
मिट्टी से निकलते नहीं अश्जार मिरे यार
क्या ख़ाक किसी ग़ैर पे दिल को हो भरोसा
अपने भी हुए जाते हैं अग़्यार मिरे यार
मक़्तल सी फ़ज़ा रहती है इस मुल्क में हर दम
देखे हैं कई मंज़र-ए-ख़ूँ-बार मिरे यार
हम ख़ाक-नशीनों की यहाँ कौन सुनेगा
ऊँचे हैं बहुत ख़्वाब के दरबार मिरे यार
देखो ये चलन ठीक नहीं इश्क़ में हरगिज़
वा'दे से मुकर जाते हो हर बार मिरे यार
दो चार ही अल्फ़ाज़ मोहब्बत से भरे हों
तो दश्त को कर देते हैं गुलज़ार मिरे यार
'हस्सान'-ए-जवाँ ख़ूब तिरी मश्क़-ए-सुख़न है
हर रोज़ कहे जाते हो अशआ'र मिरे यार
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