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अश्क की ऐसी फ़रावानी पे रश्क आता है - हस्सान अहमद आवान कविता - Darsaal

अश्क की ऐसी फ़रावानी पे रश्क आता है

अश्क की ऐसी फ़रावानी पे रश्क आता है

चश्म-ए-नम तेरी परेशानी पे रश्क आता है

जब किसी आलम-ए-हैरत की ख़बर लगती है

रश्क आता है जहाँ-बानी पे रश्क आता है

ताबिश-ए-माह भी कुछ कम तो नहीं है लेकिन

यार के चेहरा-ए-नूरानी पे रश्क आता है

औज-ए-अफ़्लाक पे तन्हाई को ले आया था

इस लिए कूचा-ए-वीरानी पे रश्क आता है

हुस्न-ए-अहमद का ही अतिया है ये हुस्न-ए-दुनिया

हुस्न की इतनी फ़रावानी पे रश्क आता है

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