अश्क की ऐसी फ़रावानी पे रश्क आता है
अश्क की ऐसी फ़रावानी पे रश्क आता है
चश्म-ए-नम तेरी परेशानी पे रश्क आता है
जब किसी आलम-ए-हैरत की ख़बर लगती है
रश्क आता है जहाँ-बानी पे रश्क आता है
ताबिश-ए-माह भी कुछ कम तो नहीं है लेकिन
यार के चेहरा-ए-नूरानी पे रश्क आता है
औज-ए-अफ़्लाक पे तन्हाई को ले आया था
इस लिए कूचा-ए-वीरानी पे रश्क आता है
हुस्न-ए-अहमद का ही अतिया है ये हुस्न-ए-दुनिया
हुस्न की इतनी फ़रावानी पे रश्क आता है
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