पैहम दिया प्याला-ए-मय बरमला दिया
पैहम दिया प्याला-ए-मय बरमला दिया
साक़ी ने इल्तिफ़ात का दरिया बहा दिया
उस हीला-जू ने वस्ल की शब हम से रूठ कर
नैरंग-ए-रोज़गार का आलम दिखा दिया
अल्लाह री बहार की रंग आफ़रीनियाँ
सेहन-ए-चमन को तख़्ता-ए-जन्नत बना दिया
अब वो हुजूम-ए-शौक़ की सरमस्तियाँ कहाँ
मायूसी-ए-फ़िराक़ ने दिल ही बुझा दिया
'हसरत' ये वो ग़ज़ल है जिसे सुन के सब कहें
'मोमिन' से अपने रंग को तू ने मिला दिया
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