न सूरत कहीं शादमानी की देखी
न सूरत कहीं शादमानी की देखी
बहुत सैर दुनिया-ए-फ़ानी की देखी
मिरी चश्म-ए-ख़ूँ-बार में ख़ूब रह कर
बहार आप ने गुल-फ़िशानी की देखी
तमन्ना ने उस रू-ए-ज़ेबा को देखा
कि तस्वीर हुस्न-ए-जवानी की देखी
अजब शौक़ से दस्त-ए-साक़ी में हम ने
सुराही मय-ए-अरग़वानी की देखी
ज़हे रोब-ए-हुस्न उन के दर पर किसी ने
ज़रूरत न कुछ पासबानी की देखी
न तुम सा ख़ुश-अख़्लाक़ पाया न हम ने
कहीं शान ये दिल-सितानी की देखी
मुझे कर के मायूस बोले वो 'हसरत'
मसर्रत ग़म-ए-जावेदानी की देखी
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