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आप ने क़द्र कुछ न की दिल की - हसरत मोहानी कविता - Darsaal

आप ने क़द्र कुछ न की दिल की

आप ने क़द्र कुछ न की दिल की

उड़ गई मुफ़्त में हँसी दिल की

ख़ू है अज़-बस कि आशिक़ी दिल की

ग़म से वाबस्ता है ख़ुशी दिल की

याद हर हाल में रहे वो मुझे

अल-ग़रज़ बात रह गई दिल की

मिल चुकी हम को उन से दाद-ए-वफ़ा

जो नहीं जानते लगी दिल की

चैन से महव-ए-ख़्वाब-ए-नाज़ में वो

बेकली हम ने देख ली दिल की

हमा-तन सर्फ़-होश्यारी-ए-इश्क़

कुछ अजब शय है बे-ख़ुदी दिल की

उन से कुछ तो मिला वो ग़म ही सही

आबरू कुछ तो रह गई दिल की

मर मिटे हम न हो सकी पूरी

आरज़ू तुम से एक भी दिल की

वो जो बिगड़े रक़ीब से 'हसरत'

और भी बात बन गई दिल की

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