साक़ी हैं रोज़-ए-नौ-बहार यक दो सह चार पंज ओ शश
साक़ी हैं रोज़-ए-नौ-बहार यक दो सह चार पंज ओ शश
दे मुझे जाम-ए-ख़ुश-गवार यक दो सह चार पंज ओ शश
बोसा मैं लूँगा गिन के यार यक दो सह चार पंज ओ शश
कह चुका बस मैं एक बार यक दो सह चार पंज ओ शश
पहुँचें न तुझ को गुल-इज़ार यक दो सह चार पंज ओ शश
रुख़ तिरा एक और बहार यक दो सह चार पंज ओ शश
घेरें रहें हैं तुझ को यार यक दो सह चार पंज ओ शश
सैद तू जो करे शिकार यक दो सह चार पंज ओ शश
सुब्ह-ए-विसाल का भी दिन देखूँगा ऐ ख़ुदा कभी
हो चुकीं शाम-ए-इंतिज़ार यक दो सह चार पंज ओ शश
जी मिरा चाहता है यूँ होवे जो दस्तरस कभी
तुझ पर करूँ मैं जाँ-निसार यक दो सह चार पंज ओ शश
बोसों के तेरे लब पे हैं मेरे उधार बे-शुमार
दे है तू कुछ भी कर शुमार यक दो सह चार पंज ओ शश
हिज्र की शब ऐ माह-रू रो रो गिनें हैं सुब्ह तक
तारे ये चश्म-ए-अश्क-बार यक दो सह चार पंज ओ शश
उँगलियों पे गिनूँ हूँ मैं घड़ियाँ उमीद-ए-वस्ल में
जूँ गिने साहिब-ए-क़िमार यक दो सह चार पंज ओ शश
शश-जिहत-ए-जहाँ के पेच मुँह करूँ जिधर को मैं
होते हैं मुझ से ग़म दो-चार यक दो सह चार पंज ओ शश
'हसरत'-ए-ग़म-ज़दा का ग़म खावेगा तू अगर न यार
उस के हैं तुझ से ग़म-गुसार यक दो सह चार पंज ओ शश
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