करे आशिक़ पे वो बेदाद जितना उस का जी चाहे
करे आशिक़ पे वो बेदाद जितना उस का जी चाहे
रखे दिल को मिरे नाशाद जितना उस का जी चाहे
हमें भी सब्र ख़ातिर-ख़्वाह दाद-ए-हक़ है उल्फ़त में
वो दे जौर ओ जफ़ा की दाद जितना उस का जी चाहे
ये मज़लूम-ए-मोहब्बत दाद-रस हरगिज़ न पावेगा
करे दिल-दाद और फ़रियाद जितना उस का जी चाहे
अदम है और वजूद उस मुश्त-ए-पर का भी मसावी सा
सितम हम पर करे सय्याद जितना उस का जी चाहे
बला-ए-ना-गहाँ गिर्या गिरफ़्तारी नहीं ग़ाफ़िल
वो हो ग़म से मिरे आज़ाद जितना उस का जी चाहे
नहीं है सरनविश्त उस की लब-ए-जाँ-बख़्श-शीरीं की
करे जाँ-कंदनी फ़रहाद जितना उस का जी चाहे
हमें 'हसरत' फ़रामोशी भी उस की यादगारी है
करे गो हम को कम-तर याद जितना उस का जी चाहे
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