जो हमें चाहे उस के चाकिर हैं
जो हमें चाहे उस के चाकिर हैं
यार-ए-शातिर न बार-ए-ख़ातिर हैं
याद है हम से प्यार से कहना
तुझ से हम सब तरह से हाज़िर हैं
दिल उठावेंगे तुझ से ता-मक़्दूर
सब्र करने पे गो न क़ादिर हैं
यार ओ आशिक़ बहम मुआफ़िक़ हों
इत्तिफ़ाक़ ऐसे शाज़-ओ-नादिर हैं
वस्ल की बिन न आई कुछ तदबीर
हम से कम आशिक़ों में बद-बिर हैं
कुछ क़ुसूर अपनी बंदगी में नहीं
बंदगी से अगर मुक़स्सिर हैं
'हसरत' इश्क़-ए-बुताँ से माँग अमाँ
जितने हैं सब ये सख़्त काफ़िर हैं
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