भरे सफ़र में घड़ी-भर का आश्ना न मिला
भरे सफ़र में घड़ी-भर का आश्ना न मिला
शदीद प्यास में सहरा सराब सा न मिला
गुज़र गए तो हज़ारों निशाँ थे पहले से
पलट के आए तो अपना ही नक़्श-ए-पा न मिला
कभी जो धूप तो पैकर पिघल गए सारे
कोई भी नक़्श मुझे मेरे ख़्वाब सा न मिला
रुके हुए सभी आँसू छलक गए लेकिन
वो शख़्स फिर भी निगाहों से बोलता न मिला
ठहर गई थी मिरे पास चाँदनी कि उसे
तुम्हारे शहर में कोई भी जागता न मिला
हवा के साथ ही आवाज़ लौट आई है
ख़ला में फिरती रही कोई हम-नवा न मिला
चला तो मेरी नज़र में हज़ार राहें थीं
भटक गया तो मुझे घर का रास्ता न मिला
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