दानाइयाँ अटक गईं लफ़्ज़ों के जाल में
दानाइयाँ अटक गईं लफ़्ज़ों के जाल में
इतने जवाब गुम हैं मिरे इक सवाल में
दरिया बस इक क़दम कभी साहिल की सम्त आ
देखूँगा ज़ोर कितना है तेरे उबाल में
की एहतियात लाख मगर हाल ये हुआ
आना था जिन को आ ही गए तेरी चाल में
जी चाहता है तर्क-ए-मोहब्बत को बार बार
आता है एक ऐसा भी लम्हा विसाल में
अब क्या उसूल-ए-दश्त-नवर्दी की बात हो
उलझे पड़े हैं पाँव शिकारी के जाल में
(941) Peoples Rate This