गरेबाँ चाक, धुआँ, जाम, हाथ में सिगरेट
शब-ए-फ़िराक़, अजब हाल में पड़ा हुआ हूँ
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बदन से रूह हम-आग़ोश होने वाली थी
ज़मीनों में सितारे बो रहा हूँ
फ़ैसला हिज्र का मंज़ूर भी हो सकता है
तू नहीं है तो तिरे हमनाम से रिश्ता रक्खा
ज़िंदगी क्या यूँही नाशाद करेगी मुझ को
वो सब में हम को बार-ए-दिगर देखते रहे
दिल-मोहल्ला ग़ुलाम हो जाए
ये उस की मर्ज़ी कि मैं उस का इंतिख़ाब न था
तिरे ख़याल तिरी आरज़ू से दूर रहे
सारी रुस्वाई ज़माने की गवारा कर के
वो मिरे शहर में आता है चला जाता है
हादिसा इश्क़ में दरपेश हुआ चाहता है