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ज़मीनों में सितारे बो रहा हूँ - हाशिम रज़ा जलालपुरी कविता - Darsaal

ज़मीनों में सितारे बो रहा हूँ

ज़मीनों में सितारे बो रहा हूँ

मुझे हरगिज़ न कहना रो रहा हूँ

गवाही दें समुंदर चाँद साहिल

अकेला हूँ कभी मैं दो रहा हूँ

उसे लौटा दिया मैं ने ये कह कर

अभी जाओ अभी मैं सो रहा हूँ

मोहब्बत की कहानी भी अजब है

जिसे पाया नहीं था खो रहा हूँ

पुराने पर नए कुछ ज़ख़्म खा कर

लहू से मैं लहू को धो रहा हूँ

दुआओं के वसीले से मैं 'हाशिम'

यहाँ का था वहाँ का हो रहा हूँ

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