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बहुत दिन तक कोई चेहरा मुझे अच्छा नहीं लगता - हाशिम रज़ा जलालपुरी कविता - Darsaal

बहुत दिन तक कोई चेहरा मुझे अच्छा नहीं लगता

बहुत दिन तक कोई चेहरा मुझे अच्छा नहीं लगता

मता-ए-दीद पे क़ब्ज़ा मुझे अच्छा नहीं लगता

कनीज़ों पे भी आ सकता है दिल ज़िल्ल-ए-इलाही का

निज़ाम-ए-इश्क़ में शजरा मुझे अच्छा नहीं लगता

मैं कुछ भी सोच सकता हूँ मैं कुछ भी देख सकता हूँ

ख़याल-ओ-ख़्वाब पे पहरा मुझे अच्छा नहीं लगता

न खिड़की है न आँगन है न रोशन-दान है कोई

इमारत-साज़ ये नक़्शा मुझे अच्छा नहीं लगता

जो होती हाथ में मेरे तो दुनिया बाँट देता मैं

किसी के हाथ में कासा मुझे अच्छा नहीं लगता

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