ये बद-नसीबी नहीं है तो और फिर क्या है
सफ़र अकेले किया हम-सफ़र के होते हुए
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खुला ये राज़ कि ये ज़िंदगी भी होती है
तिरी मदद का यहाँ तक हिसाब देना पड़ा
वो एक रात की गर्दिश में इतना हार गया
बड़े हिसाब से इज़्ज़त बचानी पड़ती है
ये इंतिक़ाम है या एहतिजाज है क्या है
यहाँ मज़बूत से मज़बूत लोहा टूट जाता है
दर-ओ-दीवार भी घर के बहुत मायूस थे हम से
हमारे ख़्वाब सब ताबीर से बाहर निकल आए
दर्द आसानी से कब पहलू बदल कर निकला
शौक़ से आप ये अंग्रेज़ी दवा भी लेते