तू एक साल में इक साँस भी न जी पाया
मैं एक सज्दे में सदियाँ कई गुज़ार गया
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अब उसे छोड़ के जाना भी नहीं चाहते हम
अमीर-ए-शहर से मिल कर सज़ाएँ मिलती हैं
यहाँ मज़बूत से मज़बूत लोहा टूट जाता है
खुला ये राज़ कि ये ज़िंदगी भी होती है
हमारे दोस्तों में कोई दुश्मन हो भी सकता है
ये इंतिक़ाम है या एहतिजाज है क्या है
शौक़ से आप ये अंग्रेज़ी दवा भी लेते
तेरे मेहमाँ के स्वागत का कोई फूल थे हम
हमारे ख़्वाब सब ताबीर से बाहर निकल आए
ज़रा सी चोट लगी थी कि चलना भूल गए
ये बद-नसीबी नहीं है तो और फिर क्या है
नज़र न आए हम अहल-ए-नज़र के होते हुए