खुला ये राज़ कि ये ज़िंदगी भी होती है

खुला ये राज़ कि ये ज़िंदगी भी होती है

बिछड़ के तुझ से हमें अब ख़ुशी भी होती है

वो फ़ोन कर के मिरा हाल पूछ लेता है

नमक-हरामों की कैटेगरी भी होती है

मिज़ाज पूछने वाले मज़ा भी लेते हैं

कभी जो दर्द में थोड़ी कमी भी होती है

यही तो खोलती है दुश्मनी का दरवाज़ा

ख़राब चीज़ मियाँ दोस्ती भी होती है

तुम अपने क़दमों की रफ़्तार पर बहुत ख़ुश हो

ये रेल-गाड़ी कहीं पर खड़ी भी होती है

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