चले गए हो सुकून-ओ-क़रार-ए-जाँ ले कर

चले गए हो सुकून-ओ-क़रार-ए-जाँ ले कर

हम अपने दर्द को जाएँ कहाँ कहाँ ले कर

बहुत दिनों में मिला है पयाम-ए-मौसम-ए-गुल

नसीम-ए-सुब्ह चली है कशाँ कशाँ ले कर

अब अपने अपने मुक़द्दर पे बात ठहरी है

उठा है अब्र-ए-गुहर-बार बिजलियाँ ले कर

यहाँ न मैं हूँ न तू है न कोई शहनाई

पहुँच गई है तिरी आरज़ू कहाँ ले कर

नए हैं जिस्म के तारों पे रूह के नग़्मे

उठे हैं बज़्म से इक कैफ़-ए-जावेदाँ ले कर

ग़म-ए-हयात ने फ़ुर्सत न दी सुनाने की

चले थे हम भी मोहब्बत की दास्ताँ ले कर

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Chale Gae Ho Sukun-o-qarar-e-jaan Le Kar In Hindi By Famous Poet Hasan Tahir. Chale Gae Ho Sukun-o-qarar-e-jaan Le Kar is written by Hasan Tahir. Complete Poem Chale Gae Ho Sukun-o-qarar-e-jaan Le Kar in Hindi by Hasan Tahir. Download free Chale Gae Ho Sukun-o-qarar-e-jaan Le Kar Poem for Youth in PDF. Chale Gae Ho Sukun-o-qarar-e-jaan Le Kar is a Poem on Inspiration for young students. Share Chale Gae Ho Sukun-o-qarar-e-jaan Le Kar with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.