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ठहरे पानी को वही रेत पुरानी दे दे - हसन रिज़वी कविता - Darsaal

ठहरे पानी को वही रेत पुरानी दे दे

ठहरे पानी को वही रेत पुरानी दे दे

मेरे मौला मिरे दरिया को रवानी दे दे

आज के दिन करें तजदीद-ए-वफ़ा धरती से

फिर वही सुब्ह वही शाम सुहानी दे दे

तेरी मिट्टी से मिरा भी तो ख़मीर उट्ठा है

मेरी धरती तू मुझे मेरी कहानी दे दे

वो मोहब्बत जिसे हम भूल चुके बरसों से

उस की ख़ुशबू ही बतौर एक निशानी दे दे

तपते सहराओं पे हो लुत्फ़-ओ-करम की बारिश

ख़ुश्क चश्मों के किनारों को भी पानी दे दे

दीदा-ओ-दिल जिसे अब याद किया करते हैं

वही चेहरा वही आँखें वो जवानी दे दे

जिस की चाहत में 'हसन' आँखें बिछी जाती हैं

मेरी आँखों को वही ल'अल-ए-यमानी दे दे

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