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तमाम शोबदे उस के कमाल उस के हैं - हसन रिज़वी कविता - Darsaal

तमाम शोबदे उस के कमाल उस के हैं

तमाम शोबदे उस के कमाल उस के हैं

शिकारी और है ज़ाहिर में जाल उस के हैं

वो एक शख़्स जो ओझल हुआ है आँखों से

हर एक चेहरे पे अब ख़द्द-ओ-ख़ाल उस के हैं

बसर किया है जिसे हम ने ज़िंदगी की तरह

मता-ए-उम्र के सब माह-ओ-साल उस के हैं

वो ख़ुश-नसीब है कितना कि इतने बरसों से

सितारे बुर्ज में सब हस्ब-ए-हाल उस के हैं

अब उस से बढ़ के भला मो'तबर कहें किस को

ज़माना उस का है माज़ी-ओ-हाल उस के हैं

बदलती रुत में जिसे मैं न भूल पाया 'हसन'

निशान दिल पे मिरे ला-ज़वाल उस के हैं

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