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सूरत है वो ऐसी कि भुलाई नहीं जाती - हसन रिज़वी कविता - Darsaal

सूरत है वो ऐसी कि भुलाई नहीं जाती

सूरत है वो ऐसी कि भुलाई नहीं जाती

रूदाद-ए-ग़म-ए-हिज्र सुनाई नहीं जाती

हर सुब्ह-ए-अलम शाम-ए-सितम का है तसलसुल

क्या दिल पे गुज़रती है बताई नहीं जाती

कहती है दुल्हन शाम की बालों को बिखेरे

यूँ नींद भी आँखों से उड़ाई नहीं जाती

चाहत पे कभी बस नहीं चलता है किसी का

लग जाती है ये आग लगाई नहीं जाती

आसान नहीं है नई दुनिया का बसाना

लेकिन कभी तन्हा ये बसाई नहीं जाती

अश्कों से 'हसन' आग कहीं दिल की बुझी है

ये आग तो दरिया है बुझाई नहीं जाती

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