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पहले सी अब बात कहाँ है - हसन रिज़वी कविता - Darsaal

पहले सी अब बात कहाँ है

पहले सी अब बात कहाँ है

वो दिन और वो रात कहाँ है

बातें जैसे पतझड़ पतझड़

सोचों की बारात कहाँ है

सारे मौसम एक हुए हैं

वो रुत वो बरसात कहाँ है

उस का चेहरा जैसे सरसों

आँखों में वो बात कहाँ है

इक शब मैं ने ही पूछा था

ऐ रब तेरी ज़ात कहाँ है

क़र्या क़र्या जो लहराया

वो परचम वो हात कहाँ है

मैं बादल तू सहरा 'रिज़वी'

तेरा मेरा सात कहाँ है

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