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न वो इक़रार करता है न वो इंकार करता है - हसन रिज़वी कविता - Darsaal

न वो इक़रार करता है न वो इंकार करता है

न वो इक़रार करता है न वो इंकार करता है

हमें फिर भी गुमाँ है वो हमीं से प्यार करता है

मैं उस के किस सितम की सुर्ख़ियाँ अख़बार में देखूँ

वो ज़ालिम है मगर हर ज़ुल्म से इंकार करता है

मुंडेरों से कोई मानूस सी आवाज़ आती है

कोई तो याद हम को भी पस-ए-दीवार करता है

ये उस के प्यार की बातें फ़क़त क़िस्से पुराने हैं

भला कच्चे घड़े पर कौन दरिया पार करता है

हमें ये दुख कि वो अक्सर कई मौसम नहीं मिलता

मगर मिलने का वादा हम से वो हर बार करता है

'हसन' रातों को जब सब लोग मीठी नींद सोते हैं

तो इक ख़्वाब-आश्ना चेहरा हमें बेदार करता है

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