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अनीस-ए-जाँ हैं अभी तक निशानियाँ उस की - हसन रिज़वी कविता - Darsaal

अनीस-ए-जाँ हैं अभी तक निशानियाँ उस की

अनीस-ए-जाँ हैं अभी तक निशानियाँ उस की

भुलाए भूल न पाए कहानियाँ उस की

हर एक लहजे में शामिल है ज़ाइक़ा उस का

सदा सदा में हैं गौहर-फ़िशानियाँ उस की

किसी को मार गया इस का तुंद-ओ-तेज़ मिज़ाज

हमें तो मार गईं क़द्र-दानियाँ उस की

ज़रा सी बात पे उस का सिमट सिमट जाना

वो बात बात पे नज़राँ झुकानियाँ उस की

किए हैं जब भी तक़ाज़े नए नए उस से

सुनी हैं फिर वही बाताँ पुरानियाँ उस की

किसी की बात पे उस का महक महक उठना

वो मेरे ज़िक्र पे कुछ बद-गुमानियाँ उस की

नज़र में हुस्न किसी का 'हसन' समाता नहीं

कि हम ने देखी हैं उठती जवानियाँ उस की

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