रुत है ऐसी कि दर-ओ-बाम न साए होंगे
रुत है ऐसी कि दर-ओ-बाम न साए होंगे
लोग पलकों पे हसीं ख़्वाब सजाए होंगे
वक़्त के साथ बदल जाते हैं चेहरे सारे
आज अपने हैं यही लोग पराए होंगे
लोग इसी वज्ह से पथराव किया करते हैं
आप शीशे की दुकाँ ख़ूब सजाए होंगे
राह हमवार न आसाँ था हुसूल-ए-मंज़िल
हौसले हम ने बहुत अपने गँवाए होंगे
यूँही एहसास-ए-नदामत तो नहीं उन को 'हसन'
अपने हाथों से ही घर अपना जलाए होंगे
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