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पहले नज़्र लब-ओ-रुख़्सार करेगी दुनिया - हसन निज़ामी कविता - Darsaal

पहले नज़्र लब-ओ-रुख़्सार करेगी दुनिया

पहले नज़्र लब-ओ-रुख़्सार करेगी दुनिया

फिर तुझे बर-सर-ए-पैकार करेगी दुनिया

गेसू-ए-ज़ीस्त को सुलझाने में गुज़़रेंगे दिन

मुझ से इस दर्जा अगर प्यार करेगी दुनिया

छोड़ देगी तुझे टकराने की ख़ातिर और फिर

दर-ओ-दीवार से इंकार करेगी दुनिया

मुझ को मुंसिफ़ के भी मंसब पे करेगी फ़ाएज़

झूट से लड़ने को तय्यार करेगी दुनिया

मुझ को मसरूफ़ भी रक्खेगा कोई कार-ए-अबस

वक़्त-ए-मसरफ़ पे ये बेकार करेगी दुनिया

गेसू-ए-ज़ुल्मत-ए-शब मुझ को छुपा ले न कहीं

इस पहले कि गिरफ़्तार गिरेगी दुनिया

मैं तलबगार हूँ जीने का 'निज़ामी' लेकिन

जाने कब ख़्वाब से बेदार करेगी दुनिया

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