ना-उमीदी ने यूँ सताया था
ना-उमीदी ने यूँ सताया था
मैं ने ख़ुद ही दिया बुझाया था
एक बस्ती हुई वहीं आबाद
तुम ने ख़ेमा जहाँ लगाया था
कुछ हुनर की कमी थी क़ातिल में
कुछ बुज़ुर्गों का मुझ पे साया था
मुझ को दाद-ए-वफ़ा मिली उस से
जिस ने अपना भी घर लुटाया था
अब हूँ क़ैदी उसी परी का 'नईम'
जिस ने हर क़ैद से छुड़ाया था
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