मिला न काम कोई उम्र-भर जुनूँ के सिवा
मिला न काम कोई उम्र-भर जुनूँ के सिवा
तमाम ऐश मयस्सर रहे सुकूँ के सिवा
लगी वो आग कि दीवार-ओ-दर भी चल निकले
कोई मुक़ीम नहीं घर में अब सुतूँ के सिवा
मैं उस के जिस्म की बेकल पुकार सुन भी चुका
अब उस की आँख में रक्खा है क्या फ़ुसूँ के सिवा
पड़ी वो धूप कि सब रंग पड़ गए पीले
बचा नहीं है कोई सुर्ख़ मेरे ख़ूँ के सिवा
तमाम फ़न की बिना मद्द-ओ-जज़्र दिल है 'नईम'
कि शेर-ओ-नग़्मा में क्या मौज-ए-अंदरूँ के सिवा
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