कोह के सीने से आब-ए-आतशीं लाता कोई
कोह के सीने से आब-ए-आतशीं लाता कोई
इस नवा-ए-आगही को डूब कर गाता कोई
देखता मस्ती का संगम लब है या गुफ़्तार है
जाम से मेरे जो अपना जाम टकराता कोई
बादलों की तरह आया बर्क़-आसा चल दिया
चाँद की मानिंद शब भर तो ठहर जाता कोई
हुस्न का दिल से तअ'ल्लुक़ दाइमी है गर्म है
वर्ना किस का किस से है रिश्ता कोई नाता कोई
माँगने को माँग लें अशआ'र-ए-ग़म से दिलकशी
मिल नहीं सकता है उन को फ़िक्र सा दाता कोई
नाज़िश-ए-फ़र्दा मिरा हुस्न-ए-तग़ज़्ज़ुल है 'हसन'
रंज होता आज गर कुछ क़द्र फ़रमाता कोई
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