ख़याल-ओ-ख़्वाब में कब तक ये गुफ़्तुगू होगी
ख़याल-ओ-ख़्वाब में कब तक ये गुफ़्तुगू होगी
उठाओ जाम कि अब बात रू-ब-रू होगी
अभी हूँ पास तो वो अजनबी से बैठे हैं
मैं उठ गया तो बहुत मेरी जुस्तुजू होगी
मुझे बताओ तो कुछ काम आ सकूँ शायद
तुम्हारे दिल में भी इक फ़स्ल-ए-आरज़ू होगी
तुझी को ढूँढता फिरता था दर-ब-दर फिर भी
मुझे यक़ीन था रुस्वाई कू-ब-कू होगी
बदल गया भी अगर वो तो देखने में 'नईम'
वही लिबास वही शक्ल हू-ब-हू होगी
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