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इश्क़ के बाब में किरदार हूँ दीवाने का - हसन नईम कविता - Darsaal

इश्क़ के बाब में किरदार हूँ दीवाने का

इश्क़ के बाब में किरदार हूँ दीवाने का

मैं न आग़ाज़ न अंजाम हूँ अफ़्साने का

कुछ नहीं नक़्द-ए-जुनूँ अपना ब-जुज़ दाग़-ए-अलम

यूँ तो हर ज़र्रा गुहर-ताब था वीराने का

हुस्न भी कहते हैं तनवीर-ए-नज़र को कुछ लोग

शम्अ' भी नाम है उस बज़्म में परवाने का

शुक्र है तेरी तलब जुज़्व-ए-अलम है वर्ना

मुझ में था हौसला जीने का न मर जाने का

चाहे जितना भी तुझे देख के मसरूर हो दिल

तू ही उनवाँ है ग़म-ए-ज़ीस्त के अफ़्साने का

मुश्किल-ए-इश्क़ को आसान करो तुम ही 'नईम'

ए'तिबार इस में है अपने का न बेगाने का

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