दिल में उतरोगे तो इक जू-ए-वफ़ा पाओगे
दिल में उतरोगे तो इक जू-ए-वफ़ा पाओगे
मौज-दर-मौज समुंदर का पता पाओगे
मैं तो खो जाऊँगा तन्हाई-ए-जंगल में कहीं
तुम भरे घर में कहाँ मुझ को भला पाओगे
दिल से बे-साख़्ता उमडे हैं बढ़ाओ कफ़-ए-दस्त
आज आँसू को भी हम-रंग-ए-हिना पाओगे
आग ही आग सही ख़्वाब में जल कर देखो
इस जहन्नुम में भी जन्नत की हवा पाओगे
ग़म उठाने का ये अंदाज़ बताता है 'नईम'
इक न इक रोज़ वफ़ाओं का सिला पाओगे
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