दरख़्त कट गया लेकिन वो राब्ते 'नासिर'
तमाम रात परिंदे ज़मीं पे बैठे रहे
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डाइरी में लिख के मेरे तज़्किरे रख छोड़ना
मंज़र में अगर कुछ भी दिखाई नहीं देगा
क्या ख़बर कब लौट आएँ अजनबी देसों से वो
उलझी हुई सोचों की गिर्हें खोलते रहना
अब आइना भी मिज़ाजों की बात करता है
खुले दिलों से मिले फ़ासला भी रखते रहे
वो चाँद जो उतरा है किसी और के घर में