माँगो समुंदरों से न साहिल की भीक तुम
हाँ फ़िक्र ओ फ़न के वास्ते गहराई माँग लो
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लोग सुब्ह ओ शाम की नैरंगियाँ देखा किए
हर ज़ख़्म-ए-दिल से अंजुमन-आराई माँग लो
बीते हुए लम्हों के जो गिरवीदा रहे हैं
अहल-ए-हवस के हाथों न ये कारोबार हो
हम को इस की क्या ख़बर गुलशन का गुलशन जल गया
आइने से न डरो अपना सरापा देखो
शहर की भीड़ में शामिल है अकेला-पन भी
इश्क़ को पास-ए-वफ़ा आज भी करते देखा
आइनों से पहले भी रस्म-ए-ख़ुद-नुमाई थी
मौसम का ज़ुल्म सहते हैं किस ख़ामुशी के साथ
कोई ग़मगीं कोई ख़ुश हो कर सदा देता रहा