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बीते हुए लम्हों के जो गिरवीदा रहे हैं - हसन नज्मी सिकन्दरपुरी कविता - Darsaal

बीते हुए लम्हों के जो गिरवीदा रहे हैं

बीते हुए लम्हों के जो गिरवीदा रहे हैं

हालात के हाथों वही रंजीदा रहे हैं

इन जल्वों से मामूर है दुनिया मिरे दिल की

आईनों की बस्ती में जो नादीदा रहे हैं

रिंदान-ए-बला-नोश का आलम है निराला

साक़ी की इनायत पे भी नम-दीदा रहे हैं

बरसों ग़म-ए-हालात की दहलीज़ पे कुछ लोग

गुल कर के दिए ज़ेहनों के ख़्वाबीदा रहे हैं

हर दौर में इंसान ने जीती है ये बाज़ी

हर दौर में कुछ मसअले पेचीदा रहे हैं

इंसान की सूरत में कई रंग के पत्थर

हम सीने पे रक्खे हुए ख़्वाबीदा रहे हैं

मुजरिम की सफ़ों में हैं वो मज़लूम भी जिन से

'नजमी' ने जो कुछ पूछा तो संजीदा रहे हैं

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