आइनों से पहले भी रस्म-ए-ख़ुद-नुमाई थी
आइनों से पहले भी रस्म-ए-ख़ुद-नुमाई थी
दिल शिकार होते थे ऐसी दिलरुबाई थी
फूल फूल बाम-ओ-दर रास्ते हैं गुल-पैकर
वो उधर से गुज़रे थे या बहार आई थी
पास का मुसाफ़िर क्यूँ उठ के दूर जा बैठा
नाम पूछ लेने में ऐसी क्या बुराई थी
कुछ शफ़क़ शफ़क़ आरिज़ कुछ उफ़ुक़ उफ़ुक़ चेहरे
आरज़ू ने बज़्म अपनी रात यूँ सजाई थी
कितना मोहतरम था मैं भूलता नहीं 'नजमी'
भूक भी मिरे घर में सर झुका के आई थी
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