कल ख़्वाब में देखा सखी मैं ने पिया का गाँव रे
कल ख़्वाब में देखा सखी मैं ने पिया का गाँव रे
काँटा वहाँ का फूल था और धूप जैसे छाँव रे
जो देखना चाहे उन्हें आ कर मुझी को देख ले
उन का मिरा इक रूप रे उन का मिरा इक नाँव रे
है साथ यूँ दिन-रात का कंगना से जैसे हाथ का
दिल में उलझा है यूँ पायल में जैसे पाँव रे
मेहंदी में लाली जिस तरह कानों में बाली जिस तरह
जब यूँ मिले तो क्या चले दुनिया का हम पे दाँव रे
सब से सरल भाषा वही सब से मधुर बोली वही
बोलीं जो नैना बाँवरे समझें जो सय्याँ साँवरे
हम कब मिले कैसे मिले कोई न जाने भेद ये
थोड़ा बहुत जानें 'हसन' लेकिन वो ठहरा बाँवरे
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