झुलसे बदन न सुलगें आँखें ऐसे हैं दिन-रात मिरे
झुलसे बदन न सुलगें आँखें ऐसे हैं दिन-रात मिरे
काश कभी तुम आ जाओ बदले हैं हालात मिरे
मैं क्या जानूँ किस मंज़िल की किन राहों की खोज में हूँ
मेरा ठोर ठिकाना ग़म है कोई न आए साथ मिरे
तुम रसवंती नर्म लजीली ताज़ा कोंपल सब्ज़ कली
मैं पतझड़ का मारा पीपल सूख चले हैं पात मिरे
तुम क्या जानो मेरा जीना जीते-जी मर जाना है
पाप से दिल को लाख बचा लूँ फँस जाते हैं हाथ मिरे
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