Ghazals of Hasan Kamal
नाम | हसन कमाल |
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अंग्रेज़ी नाम | Hasan Kamal |
यक़ीन टूट चुका है गुमान बाक़ी है
सर उठा कर न कभी देखा कहाँ बैठे थे
सब की बिगड़ी को बनाने निकले
कितनी मुश्किल से बहला था ये क्या कर गई शाम
कल ख़्वाब में देखा सखी मैं ने पिया का गाँव रे
झुलसे बदन न सुलगें आँखें ऐसे हैं दिन-रात मिरे
इनायत कम मोहब्बत कम वफ़ा कम
दिल लुटेगा जहाँ ख़फ़ा होगा
बिसात दिल की भला क्या निगाह-ए-यार में है
अपनी वज्ह-ए-बर्बादी जानते हैं हम लेकिन क्या करें बयाँ लोगो