अर्सा-ए-उम्र मिले वुसअ'त-ए-वीराँ में मुझे
अर्सा-ए-उम्र मिले वुसअ'त-ए-वीराँ में मुझे
वक़्त ले आया है फिर शोरिश-ए-तूफ़ाँ में मुझे
अब तो पैग़ाम अता हो कोई आज़ादी का
अब तो इक उम्र हुई है तिरे ज़िंदाँ में मुझे
ग़म टपक पड़ता है क्यूँ आँख से आँसू बन कर
जब तिरी याद सताए शब-ए-हिज्राँ में मुझे
सिफ़त-ए-कोह-ए-गिराँ जम के खड़ा हूँ लेकिन
राख हो जाना है इक दिन तिरे अरमाँ में मुझे
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